Sunday, January 20, 2013

गीता के दो सूत्र

गीता सूत्र - 14.7

" आसक्ति , कामना एवं राग - रूप की पकड़ राजस गुण से है "

गीता सूत्र - 6.27 

" राजस गुण से प्रभावित कभीं ब्रह्म मय नहीं हो सकता "

गीता के इन दो सूत्रों पर किया गया गहरा  मनन मनुष्य को वैराज्ञ में पहुंचाता है
 जहाँ
 ब्रह्म - ऊर्जा के अतितिक्त और कुछ नहीं होता / वैराज्ञ
 अर्थात बिना राग
 अर्थात
 वह जिस पर काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह भय एवं अहँकार की छाया तक नहीं पड़ती /

राजस एवं तामस गुण प्रभु से दूर रखते हैं .....
सात्विक गुण में उपजा अहंकार नर्क का द्वार दिखाता है .....
अहँकार रहित सात्त्विक गुण देह के सभीं नौ द्वारों में ज्ञान की ऊर्जा भरता है .......
ज्ञान वह जो प्रभु से प्रभु में स्थिर रखे ......

क्या है मेरा ?
क्या है तेरा ?
कौन है तेरा ? कौन है मेरा ?
मैं कौन हूँ ?
तू कौन हो ?
यह जगत क्या है ?
जगत की सभीं सूचनाएं क्या हैं ?

प्रश्न संदेह की निशानी हैं और जब तन - मन एवं बुद्धि में ज्ञान की ऊर्जा उदित होती है तब क्षेत्र , मन - बुद्धि सभीं चेतन मय हो उठते हैं और वही प्रश्न कर्ता इस स्थिति में द्रष्टा बन कर प्रकृति - पुरुष के खेल को देख कर खुश रहता है / 

==== ओम् =====

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