Sunday, March 4, 2012

गीता में प्रभू कहते हैं



  • गीता में प्रभू कहते हैं , द्रष्टा सत् को पहचानता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , द्रष्टा प्रकृति - पुरुष का ज्ञानी होता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , तत्त्व – वित् द्रष्टा होता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , द्रष्टा ही योगी , संन्यासी एवं स्थिर प्रज्ञ होता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , मैं किसी के कर्म एवं कर्म फल की रचना नहीं करता

  • गीता में प्रभू कहते हैं , द्रष्टा द्वैत्य में नहीं रहता

  • गीता में प्रभू कहते हैं , मैं नहीं कर्म की प्रेणना गुण देते हैं

  • गीता में प्रभू कहते है , कर्म का फल सुख – दुःख की जननी नहीं है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , जो कर्म फल की उम्मीद रखते हैं उनको सुख – दुःख से गुजरना होता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसज्ज्ञित :

===== ओम् =======



गीता में प्रभू कहते हैं


  • गीता में प्रभू कहते हैं , द्रष्टा सत् को पहचानता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , द्रष्टा प्रकृति - पुरुष का ज्ञानी होता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , तत्त्व – वित् द्रष्टा होता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , द्रष्टा ही योगी , संन्यासी एवं स्थिर प्रज्ञ होता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , मैं किसी के कर्म एवं कर्म फल की रचना नहीं करता

  • गीता में प्रभू कहते हैं , द्रष्टा द्वैत्य में नहीं रहता

  • गीता में प्रभू कहते हैं , मैं नहीं कर्म की प्रेणना गुण देते हैं

  • गीता में प्रभू कहते है , कर्म का फल सुख – दुःख की जननी नहीं है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , जो कर्म फल की उम्मीद रखते हैं उनको सुख – दुःख से गुजरना होता है

  • गीता में प्रभू कहते हैं , भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसज्ज्ञित :


===== ओम्=======