Friday, February 22, 2013

गीता मार्ग भिन्न मार्ग है [ भाग - 01 ]

गीता का सम्बन्ध युद्ध से है लेकिन ------


गीता का जन्म युद्ध - क्षेत्र का वह भाग है जहाँ एक तरफ कौरवों की सेना खड़ी है और दूसरी तरफ पांडव सेना / दोनों सेनाओं के लोग इस इन्तजार में खड़े हैं  कि संकेत मिले और एक दूसरे को समाप्त करदें / दोनों सेनाओं के योद्धाओं के अन्तः करण में कामना की ऊर्जा बह रही है , अहँकार की ऊर्जा बह रही है , क्रोध की ऊर्जा बह रही है , लोभ की ऊर्जा बह रही है लेकिन -------

  • श्री कृष्ण में द्रष्टा की ऊर्जा बह रही है .....
  • श्री अर्जुन में मोह की ऊर्जा बह रही है ....

अर्थात 

सात्त्विक गुण [ श्री कृष्ण में ] , राजस गुण [ कामना , क्रोध , लोभ के रूप में , अन्य सभीं में ] और अर्जुन में तामस गुण की ऊर्जा का संचारण हो रहा है / युद्ध क्षेत्र में जितनें लोग हैं उनको तीन श्रेणियों  में देखा जा सकता
 है ; श्री कृष्ण को एक द्रष्टा के रूप में जहाँ गुणातीत की ऊर्जा है , श्री अर्जुन जहाँ मोह उर्जा का वैराज्ञ नज़र आ रहा है और अन्य दोनों पक्ष के लोगों में राजस गुण  [ भोग ] की ऊर्जा बह रही है / कुरुक्षेत्र का वह भाग जहाँ गीता ज्ञान का जन्म हो रहा है , त्रिवेणी है जहाँ सात्त्विक , राजस एवं तामस गुणों की धाराएं मिलती है लेकिन जहाँ इन तीनों में से एक भी नहीं नहीं होती / त्रिवेणी या संगम पर खडा हो कर गंगा को खोजिये , क्या आप को उस स्थान पर गंगा नजर आयेंगी जहाँ गंगा  यमुना और सरस्वती मिलती हैं , जी नहीं नजर आयेंगी / आप उस स्थान पर यमुना को देखनें का प्रयाश करें , नहीं देख पायेंगे / संगम वह क्षेत्र है जहाँ कई आपस में मिल कर एक बनाते हैं लेकिन जहाँ उन में से किस्सी एक का भी अस्तित्व नहीं होता , हाँ उस क्षेत्र के आगे या पीछे नजर डालनें पर वे सभीं नजर आते हैं जो संगम का निर्माण  करते हैं / 

गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -----

तीन गुण मुझसे हैं लेकिन मैं गुणातीत हूँ 

ऐसे लोग जो गीता को युद्ध से जोड़ कर गीता के नाम के साथ अहिंसा को जोड़ते हैं वे भ्रमित लोग हैं / गीता का जन्म युद्ध क्षेत्र के उस भाग पर होता है जो गुणातीत क्षेत्र है , जिस क्षेत्र पर स्वयं गुणातीत योगीराज  एक द्रष्टा के रूप में खड़े हैं / 

अगले अंक में हम गीता की कुछ और बातों को देखेंगे 

आज अभीं इतना ही 

==== ओम् =======

Sunday, February 10, 2013

गीता श्लोक - 6.29 - 6.30

योगयुक्तात्मा कौन है ?

[  who is steadfast yogi ? ] 

श्लोक - 6.29 

सर्वभूतस्थं आत्मानं सर्वभूतानि च आत्मनि 
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनं 

" योगयुक्त आत्मा सभीं भूतों में समभाव से आत्मा का द्रष्टा होता है 
और 
सभीं भूतों को काल्पनिक रूप से आत्मा में देखता है "
अर्थात 
योग युक्त योगी सभीं भूतों को आत्मा से आत्मा में देखता है 

श्लोक - 6.30 

य : माम् पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति 
तस्य अहम् न प्रणश्यामि सः च में न प्रणश्यति 

" वह जो सभीं भूतों में मुझे देखता है और सभीं भूतों को मुझमें देखता है , उसके लिए मैं अदृश्य नहीं रहता "
अर्थात 
ऐसा योगी जो सभीं भूतों के अंदर - बाहर सर्वत्र प्रभु श्री कृष्ण को देखता
 है , उस योगी के लिए श्री कृष्ण निराकार नहीं रहते 

आज  हम सब को यह सोच कर दिन का द्रष्टा बनें रहना है कि ब्रह्माण्ड की सभीं सूचनाओं के अंदर और बाहर जो दिखे वह प्रभु श्री कृष्ण ही हों ....
लेकिन क्या हमें प्रभु श्री कृष्ण की पहचान मालूम है ?

प्रभु की वह पहचान जो शास्त्रों में दी गयी है , वह आप की पहचान नहीं बन सकती , वह पहचान उनकी है जिनको प्रभु उस प्रकार से दिखे थे और यहाँ हमें और आप को अपरचित श्री कृष्ण को पहचानना है जो सबके अंदर और बाहर हैं / सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हमें अपनी पांच ज्ञानेन्द्रियों एवं मन - बुद्धि के माध्यम से जिसकी भी अनुभूति हो , वह प्रभु श्री कृष्ण ही होंगे , ऎसी श्रद्धा के साथ आज का दिन हमें गुजारना है / 

गीता के श्री कृष्ण की पहचान उस मन - बुद्धि के आयाम में होती है जिकी स्थिति कुछ - कुछ
 इस प्रकार से हो ------


  • जहाँ द्वैत्य के लिए कोई जगह न हो .....
  • जहाँ मन - बुद्धि में सात्विक श्रद्धा के अलावा और कुछ न हो ......
  • जहाँ मन - बुद्धि में संदेह , मोह , भय , अहंकार , कामना , क्रोध , लोभ के लिए कोई जगह न हो ...
  • जहाँ समभाव की लहर बिना रुकावट बह रही हो 


आज इतना ही ---

==== ओम् ======

Monday, February 4, 2013

गीता श्लोक - 8.14

प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को बता  रहे हैं :

" मैं अपनें अनन्य - भक्त के लिए सदैव सुलभ हूँ " 

Lord Krishna says :

" I am always available for my steadfast yogi "

अब हमें देखना है कि -----

भक्त और अनन्य भक्त में क्या फर्क है ?

भक्त जब भक्ति की गहराई में यात्रा करता है तब वह धीरे - धीरे तन , मन एवं बुद्धि से प्रभु मय  होता चला जाता
 है / प्रभु मय योगी सम्पूर्ण संसार की सूचनाओं को प्रभु से प्रभु में देखता है /

 अनन्य भक्त वह है :--------

  • जिसकी इन्द्रियाँ बिषयों में स्थित राग - द्वेष से अप्रभावित रहती हो .....
  • जो काम का भोगी नहीं द्रष्टा हो .....
  • जिसको कामना , क्रोध , लोभ , मोह एवं भय प्रभावित न करते हों .....
  • जिसके ऊपर अहँकार की छाया तक न पड़ती हो .....
  • और 
  • जो आत्मा के  माध्यम  से  स्वयं में प्रभु को देखता हो 


आज आप इस  गीता मन्त्र पर अपनें को केंद्रित रखें 

==== ओम् ======