Sunday, February 10, 2013

गीता श्लोक - 6.29 - 6.30

योगयुक्तात्मा कौन है ?

[  who is steadfast yogi ? ] 

श्लोक - 6.29 

सर्वभूतस्थं आत्मानं सर्वभूतानि च आत्मनि 
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनं 

" योगयुक्त आत्मा सभीं भूतों में समभाव से आत्मा का द्रष्टा होता है 
और 
सभीं भूतों को काल्पनिक रूप से आत्मा में देखता है "
अर्थात 
योग युक्त योगी सभीं भूतों को आत्मा से आत्मा में देखता है 

श्लोक - 6.30 

य : माम् पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति 
तस्य अहम् न प्रणश्यामि सः च में न प्रणश्यति 

" वह जो सभीं भूतों में मुझे देखता है और सभीं भूतों को मुझमें देखता है , उसके लिए मैं अदृश्य नहीं रहता "
अर्थात 
ऐसा योगी जो सभीं भूतों के अंदर - बाहर सर्वत्र प्रभु श्री कृष्ण को देखता
 है , उस योगी के लिए श्री कृष्ण निराकार नहीं रहते 

आज  हम सब को यह सोच कर दिन का द्रष्टा बनें रहना है कि ब्रह्माण्ड की सभीं सूचनाओं के अंदर और बाहर जो दिखे वह प्रभु श्री कृष्ण ही हों ....
लेकिन क्या हमें प्रभु श्री कृष्ण की पहचान मालूम है ?

प्रभु की वह पहचान जो शास्त्रों में दी गयी है , वह आप की पहचान नहीं बन सकती , वह पहचान उनकी है जिनको प्रभु उस प्रकार से दिखे थे और यहाँ हमें और आप को अपरचित श्री कृष्ण को पहचानना है जो सबके अंदर और बाहर हैं / सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हमें अपनी पांच ज्ञानेन्द्रियों एवं मन - बुद्धि के माध्यम से जिसकी भी अनुभूति हो , वह प्रभु श्री कृष्ण ही होंगे , ऎसी श्रद्धा के साथ आज का दिन हमें गुजारना है / 

गीता के श्री कृष्ण की पहचान उस मन - बुद्धि के आयाम में होती है जिकी स्थिति कुछ - कुछ
 इस प्रकार से हो ------


  • जहाँ द्वैत्य के लिए कोई जगह न हो .....
  • जहाँ मन - बुद्धि में सात्विक श्रद्धा के अलावा और कुछ न हो ......
  • जहाँ मन - बुद्धि में संदेह , मोह , भय , अहंकार , कामना , क्रोध , लोभ के लिए कोई जगह न हो ...
  • जहाँ समभाव की लहर बिना रुकावट बह रही हो 


आज इतना ही ---

==== ओम् ======

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