प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं :
" मैं अपनें अनन्य - भक्त के लिए सदैव सुलभ हूँ "
Lord Krishna says :
" I am always available for my steadfast yogi "
अब हमें देखना है कि -----
भक्त और अनन्य भक्त में क्या फर्क है ?
भक्त जब भक्ति की गहराई में यात्रा करता है तब वह धीरे - धीरे तन , मन एवं बुद्धि से प्रभु मय होता चला जाता
है / प्रभु मय योगी सम्पूर्ण संसार की सूचनाओं को प्रभु से प्रभु में देखता है /
अनन्य भक्त वह है :--------
- जिसकी इन्द्रियाँ बिषयों में स्थित राग - द्वेष से अप्रभावित रहती हो .....
- जो काम का भोगी नहीं द्रष्टा हो .....
- जिसको कामना , क्रोध , लोभ , मोह एवं भय प्रभावित न करते हों .....
- जिसके ऊपर अहँकार की छाया तक न पड़ती हो .....
- और
- जो आत्मा के माध्यम से स्वयं में प्रभु को देखता हो
आज आप इस गीता मन्त्र पर अपनें को केंद्रित रखें
==== ओम् ======
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