Monday, February 4, 2013

गीता श्लोक - 8.14

प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को बता  रहे हैं :

" मैं अपनें अनन्य - भक्त के लिए सदैव सुलभ हूँ " 

Lord Krishna says :

" I am always available for my steadfast yogi "

अब हमें देखना है कि -----

भक्त और अनन्य भक्त में क्या फर्क है ?

भक्त जब भक्ति की गहराई में यात्रा करता है तब वह धीरे - धीरे तन , मन एवं बुद्धि से प्रभु मय  होता चला जाता
 है / प्रभु मय योगी सम्पूर्ण संसार की सूचनाओं को प्रभु से प्रभु में देखता है /

 अनन्य भक्त वह है :--------

  • जिसकी इन्द्रियाँ बिषयों में स्थित राग - द्वेष से अप्रभावित रहती हो .....
  • जो काम का भोगी नहीं द्रष्टा हो .....
  • जिसको कामना , क्रोध , लोभ , मोह एवं भय प्रभावित न करते हों .....
  • जिसके ऊपर अहँकार की छाया तक न पड़ती हो .....
  • और 
  • जो आत्मा के  माध्यम  से  स्वयं में प्रभु को देखता हो 


आज आप इस  गीता मन्त्र पर अपनें को केंद्रित रखें 

==== ओम् ======

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